लीजिए शुरू हो गया साम्प्रदायिकता का खेल परवान चढ़कर बोल रहा है राजनीति का सुरूर। राजनीति में कुर्सी हथिया लेने के बाद नेताओं के समक्ष अच्छे अच्छे नहीं टिकते हैं और जब बात हो इसी कुर्सी को हथियाने कि तो कोई भी नेता पीछे नहीं रहना चाहता है। सभी राजनेता एड़ी चोटी तक का जोर लगा इस कुर्सी को हथियाना चाहते हैं। भले ही इसके खतिर उन्हें हजारों झूठ बोलने पड़े या फिर विरोधी को रोकने के लिए किसी भी हद तक जाना पड़े, वह शान से सब करते हैं। परंतु सवाल यह खड़ा होता है कि इन राजनेताओं के ऐसे कर्म व कर्तव्य किस हद तक सही हैं। देश के लोकसभा चुनावों के प्रथम चरण में जहां अब एक सप्ताह भी बाकि नहीं वहां संप्रादायिकता का खेल खेलना क्या उचित है। अभी हाल ही में कोबरा पोस्ट के द्वारा किए गए स्टिंग ने पूरी राजनीति कि रणभूमि में हलचल पैदा कर दी है। बाबरी मस्जिद व अयोध्या कांड से शायद ही देश का कोई परिवार अछूता रह गया हो। परंतु ऐसे समय मे उस कांड को लेकर किए गए स्टिंग ने चुनावी कुरूक्षेत्रा कि सरगर्मी को बढ़ दिया है। भले ही स्टिंग ने आडवाणी, कल्याण सिंह व नरसिम्हा राव जैसे दिग्गज नेताओं कि छवि पर सवा...