अपने ही घरों में दम तोड़ती भारतीय बेटियाँ
नई दिल्ली। गौरतलब है कि कुछ दिनों से पूरा देश बदलाव देख रहा है। इन बदलावों से भारतीय बेटियों पर भी असर पड़ा है। वर्ष 2013 में यौन उत्पीड़न के मामलों मंे कई बड़े चेहरे सामने आए। चाहे वो ए. के. गांगुली व तरुन तेजपाल जैसे दिग्गज हो या संत का चोला पहने आसाराम और नारायण सांई हो। 2014 की शुरुआत में ही, कोलकाता में 12 वर्ष की बच्ची के साथ बलत्कार कर उसे गर्भवती बनाकर जला देने वाली खबर से पूरे देश की रूह कांप गई। लड़कियों को पूजे जाने वाले देश भारत में शायद ही कोई ऐसा दिन होता है जब यौन उत्पीड़न की खबर नहीं आती है। कितने ही यौन उत्पीड़न के मामले घर की चारदिवारी में ही कैद होकर दम तोड़ देते हैं।
आज कितनी ही गृहिणियों, बच्चियों व महिलाओं को अपने ही घर में अपने ही भाई, बाप, मामा, चाचा, व ताउफ के यौन उत्पीड़न का शिकार होती हैं। समाज में ऐसे मुद्दे खुलकर सामने नहीं आते चाहे इसे हमारे समाज का दुर्भाग्य कहिए या पुरूष प्रधनता का परिणाम। महिलाओं व बच्चियों को सिर्पफ मंनोरंजन का समान समझ लिया गया है। उनकी आवाज, सिसकियां, आंसू व दर्द सिर्पफ चारदिवारी में ही रह जाती है। चाहे इसका कारण हमारे देश की खराब कानून व्यवस्था हो या पिफर समाज की ओछी मानसिकता। इसमें झूझती हैं तो सिर्पफ देश कि मासूम बच्चियां व गृहिणियां। गौरतलब है कि पिछले वर्ष हुए दिल्ली गैंगरेप ने जनसैलाब को न्याय के लिए सड़कों पर उतारा। ऐसे में, हुए प्रदर्शन, नारेबाजी व ध्रनों ने लोगों को मुद्दों से जोड़ा तो परंतु जमिनी स्तर पर आज भी स्थिति वही है। लोगों की मानसिकता को बदलना होगा। सरकार को देश के कानून में सुधर करना होगा व दोषियों को जल्द सज़ा देनी होगी। जब तक लोगों की तुच्छ सोच नहीं बदलेगी तबतक, महिलाओं व मासूम बच्चियों को बार-बार यौन उत्पीड़न का शिकार होता रहना पड़ेगा। लोगों को जागरुक होना पड़ेगा और ऐसे जघन्य अपराधें के खिलापफ एकजुट होकर आवाज बुलंद करनी होगी।
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