राष्ट्र भक्ति, राष्ट्रीय ध्वज, व राष्ट्र भाषा का सम्मान क्या एक राष्ट्र के कुछ वर्गाें तक ही सीमित है? जी हां, ऐसा प्रश्न उठना लाजमी भी है। जब भारत सरकार के वित्त मंत्री पी. चिदंबरम सरेआम जनता के समक्ष आकर अपनी लाचारी यह कहते हुए सिद्ध् करते हैं कि उन्हें हिन्दी नहीं आती। यह कहते हुए उन्हें तनिक भी ख्याल नहीं आया कि वो देश भक्ति कि भावनाओं से ओत-प्रोत राष्ट्र के वित्त मंत्री है। चुनावी माहौल में यह कैसी विडंबना है कि राष्ट्र का कार्यभार सभांलने वालों को ही राष्ट्र भाषा का ज्ञान नहीं है। खैर, बोसटन के हार्वर्ड बिज़्नेस स्कूल से पढ़े मंत्री जी से ऐसी उम्मीद कि जा सकती है। परंतु ऐसे में जब देश के चुनावी अखाड़े का मिजाज गरम हो तो यह रवैया उन्हें रणभूमि में धूल भी चटवा सकता है। एक व्यक्ति विशेष नेता के खिलाफ मंत्री जी का चुनाव न लड़ पाना उनके न जाने कितने राज़ उजागर कर देगा। परंतु संदेह भी होता है कि यह मंत्री जी के दर्द कि अवाज थी यह चुनाव न लड़ने का बहाना। भाजपा के लगातार बढ़ते वर्चस्व से हताश हो चुकी कांग्रेस के नेता का ऐसा बयान उनकी लाचारी को दर्शाने के साथ साथ, देश के प्रति उनका रवैया भी स्पष्ट करता है। चुनाव के प्रथम चरण में जहां अब कुछ ही दिन बाकि हैं, ऐसे में यह बयान ध्वस्त होती कांग्रेस के लिए हानिकारक साबित हो सकता है। यह चुनाव ही तो हैं जो सफेद कपड़ों में लिपटे नेताओं कि सच्चाई उजागर करते हैं और यहीं से आगाज होता है चुनावी चौपाल का। जहां नेताओं के ऐसे ही बयान व कारनामें बन जाते हैं चौपालों का मुद्दा।
रजत त्रिपाठी कि कच्ची कलम कि श्याही से.…
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