बड़ बोले नेता चलाते हैं राजनीति
देश के आम चुनाव जैसे जैसे नजदीक आते जा रहे, वैसे वैसे नेताओं कीे शब्दावली में भी बदलाव आता जा रहा है। राजनीति में एक दूसरे के काम का आकलन कर अपेक्षा करना तो जनहीत के लिए ही लाभदायक साबित होता है। परंतु आज के परिपेक्ष में यह आकलन बिखरता सा नजर आ रहा है। एक से एक नेता दूसरे नेता का निरादर करने में लगे हुए हैं। यहां बात किसी एक दल या नेता कि नहीं अपितु बात हो रही है संपूर्ण देश को चलाने वाले नेताओं के आचरण की। पीछले कुछ दिनों से एक के बाद एक अटपटे बयान सुने को मिले। कोई किसी नेता कि बोटी बोटी कर देना चाहता है तो कोई किसी को कुत्ता, पाकिस्तानी, एके 49 और न जाने क्या क्या बना डालता है। चुनावी मौसम कि गर्मी का असर यह है कि अब तो स्वंय नेता ही नियमों का उल्लंघन करने का उपदेश देते हैं। चुनावी प्रक्रिया में छोलमाल करने के लिए खुद ही दोबारा मतदान करने को उत्साहित करते हैं। यह चुनावी सरगर्मी ही तो है जिस कारण वर्षों तक एक दल की रोटियां तोड़ने वाले नेता अब दूसरे गुटों में पलायन कर रहे हैं। आम तौर पर चुनावों में ऐसी रास लिलाएं देखने को मिलती है। परंतु बड़बोले नेता अपने वचनों से सुर्खियां व ध्यान खिंचने में खूब काबयाम होते हैं भले ही पिफर वो कथित वाक्य का अस्तित्व शून्य क्यों न हो। बेहरहाल आज का विपक्ष और मीडिया भी उसकी सच्चाई परखने में कतराता व आलस करता नजरआता है। आखिरकार यह राजनीति भी तो उन्हीं कि है जो बड़बोले हैं। इस चुनावी मौसम में जो जितना चाहे उतना बोल ले, जितने हो सके उतने मतदाताओं को अपने शब्दों के जाल में पफंसा ले, आखिर में इनसे कौन सवाल जवाब तलब करने आने वाला है। खैर ऐसे बड़बोले नेताओं के कथन ही चुनावी चौपालों में बहस व चर्चा के नए विषय बनकर उभरते हैं।
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