जोरों-शोरों से चुनावी बिगुल बजा, महारथी मैदान में उतर आए, भीषण गरजना के साथ रणभूमि सजी और अब यह अपने समापन की और परंतु क्या वकई यह युद्ध समाप्त हुआ। क्या इसके उपरांत कोई नया बिगुल नहीं बजेगा, क्या कोई नया रण आरंभ नहीं होगा, क्या राष्ट्र की राजनीतिक सरजमीं ठंडी हो जाएगी। ऐसे ही तमाम सवाल देश के दिल में उफ्फान मार रहे हैं। आखिर अब नई सरकार बनने के बाद आगे क्या। जिस चुनावी लहर से देश ग्रस्त था, उसके समापन का रंग कैसा होगा। यह देखने के लिए पूरा विश्व उत्सुक है और उनका उत्सुक होना भी लाज्मी है। जो जन समर्थन इस चुनावी समर में दिखा, वह पहले कभी भी देखने को नहीं मिला। मतदान केंद्रों पर उमड़ी मतदाताओं की भीड़ यह साफ बायां कर रही थी कि जनादेश में जागरूता, कामनाएं, उम्मीद, और आशाएं अजागर हो उठीं हैं। वो एक बेहतर कल, एक बेहतर भविष्य और तमाम झंझटों से मुक्त एक समाज चाहता है। पर क्या चुनावी नतीजों का सूरज मतदाताओं की उम्मीद को ज्योतिर्मय पायेगा? मतदाताओं ने जिस जोश, उत्साह, जनसमर्थन से एकजुट होकर राष्ट्र हित के लिए मतदान किया, क्या वो नतीजों के बाद अदृशय हो जायेगा? सड़कों पर उतरी भीड़ का अस्तित्व क्या चुनावों तक ही सिमट कर रह जायेगा? क्या वो एक गुमनाम भीड़ थी या फिर देश उत्थान की इच्छा रखने वाले मतदाता। इसका पता तो चुनावी नतीजों के आने के बाद ही चलेगा। पर सवाल अब भी वही है की चुनावी नतीजों के बाद आखिर आगे क्या ? माननीय नेताओं के समर्थन में उतरे हज़ारों -लाखों कार्यकर्ताओं और अनुयायिओं का कल क्या होगा? देखते ही देखते नतिजों के निकलते ही तमाम सांसद अपने संसदीय क्षेत्र को अलविदा कह, दिल्ली की गाड़ी में सवार हो जाएंगें। परन्तु उनके लिए दिन रात एक कर गली गली घूमने वाले समर्थकों का क्या होगा? नतीजों के आते ही माननीय राजधनी दिल्ली में बैठ अपनी जीत का जश्न मनाने में व्यस्त जायेंगे पर पीछे रह जाएगी वही भोली भाली जनता, वही आम मतदाता। जिसने नेताओं पर विश्वास जताया और उसे मतदान किया। क्या ऐसा ही होने वाला है चुनावी समर का समापन। क्या जिस जोर शोर से प्रचार, रैलियाँ व जनसभाएं हुई हैं उसी उत्त्सुकता और जोश से वायदों को भी पूरा किया जायेगा। क्या जिस जोश, उत्सुकता, रोमांच, का सृजन इस चुनावी समर में हुआ था वह यहां आकर दम तोड़ देगी। यह फिर वह क्रांति में तब्दील हो चुनावी लॉलीपॉप कहे जाने वाले वायदों को पूरा करवाएगी और एक नया सौंदर्यमय कल लयेगी। जीत का गुलाल किसी के भी आंगन उड़ें, ढोल नगाड़ों से माहौल किसी के यहां भी सराबोर हो, फर्क पड़ता है तो बस एक मात्र जनादेश पर। सरकार चाहे किसी की भी आए, असर केवल आम जनता को ही झेलना है, फिर वह चाहे अच्छा हो या बुरा। इस रोमांच चुनावी समर का समापन भी रोमांच ढंग से ही होना अनिवार्य है वर्ना यह बात हमेशा राजनीति पंडितों को खलेगी कि तमाम चहेरे, तेवर, उठा-पटक दिखाने वाले चुनाव ने शांति में कैसे शरीर त्याग दिया।
रजत त्रिपाठी की कच्ची कलम की श्याही से...
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