दहकती भारतीय रेलवे
गर्मियों का मौसम आते ही भारतीय रेलवे पर भीड़ का पहाड़ टूट पड़ता है। इस मौसम के आते ही लगता है मानो जैसे किसी ने बांध् से पानी छोड़ दिया हो और वह अपनी पूरी रफ्रतार से आगे बढ़ रहा हो। देश की राजधनी दिल्ली में चार प्रमुख रेलवे स्टेशन हैं । जहां पर हमेशा भीड़ का तांता लगा रहता है। आनंद विहार, नई दिल्ली, पुरानी दिल्ली व हजरत निजामुद्दीन सदैव भीड़ से ठसा-ठस भरा रहता है। ऐसा नहीं है कि यह एक मौसम या इसी वर्ष की समस्या है। यह समस्या है हर वर्ष, हर मौसम और हर रोज की। इसी कारण रोजाना यात्रियों के लहु-लुहान व मौत तक की खबर आती रहती है। ट्रेनों के प्लेटपफार्म पर आते ही उसके भीतर प्रवेश करने के लिए यात्रियों में जंग छिड़ जाती है। यह जंग स्टेशन में घुसने से लेकर ट्रेन के अंदर घुसने तक जारी रहती है। आज कल यह जंग इतना विकराल रूप ले लेती है कि यात्रियों को लहुलुहान तक हो जाना पड़ता है। इस जंग के खत्म हो जाते ही आगाज होता है टेªन के भीतर की जंग का। सफर करने के लिए दो गज जगह तलाशने का, जहां वो खड़े हो सफर तय कर सके। कई सौ की संख्या में लोगों को भारी भरकम रकम अदा करने पर भी मिलों का सफर एक पैर पर खड़ा होकर तय करना पड़ता है। ट्रेन में पानी न मिलने से मौत, महिलाओं के साथ दुव्यवहार, यात्रियों को चलती टेªनों से बाहर पफेंक देना जैसी तमाम दर्दनाक घटनाओं के सामने आने के बावजूद भी यात्राी अपनी जान पर खेलता है और रेल में सपफर करता है। बोरों की भांती डिब्बों में ठूंस ठूंसकर जाने वाले यात्रियों को जिस असुविधा, दर्द, घुटन व परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है, उसका अंदाजा लगाना भी शायद कठिन हो। भीषण गर्मी में दहकती लोहों की ट्रेनों का सफर कितना पीढ़ादायक है इसका अंदाजा एसी कमरों में बैठे रेलवे अध्किारियों को कहां? उन्हें टेªनों की गर्मी से ज्यादा अपनी जेबों की गर्मी की चिंता अध्कि है। अपनी जान की बाजी लगाकर टेªनों में सपफर करते यात्रियों के मन में बार बार उनकी सुरक्षा व सुविध को लेकर प्रश्न उठते रहते हैं। क्या जिस टेªन में वो सपफर कर रहा है उसमें उसका दम घुटने से मौत नहीं होगी? उस ट्रेन में पीने लायक पानी उपलब्ध भी होगा या नहीं ? ऐसे ही तमाम सवालों को अपने मन में दबाकर आवाम भारतीय रेल पर अपनी जान की बाजी खेल रहा है।
रजत त्रिपाठी कच्ची कलम की श्याही से.…
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