भारत के 'साइक्लनिक हिंदू'
कोलक्ता के हाईकोर्ट के वकील नरेन्द्रनाथ ने 12 जनवरी 1863 को दिया था भारत को एक महान संत, जिनको विश्व ने स्वामी विवेकानंद के नाम से पहचाना। स्वामी विवेकानंद जी केवल एक महान संत ही नहीं, एक महान देशभक्त, वक्ता, विचारक, लेखक व मानव प्रेमी थे। उन्होनें अपने विचारों से केवल भारतवर्ष का हि नहीं अपितु पूरे विश्व का उत्थान किया। स्वामी जी एक ऐसे व्यक्तित्व के ध्नी थे जिन्हें शायद ही किसी लेखक की कलम बयां कर सकती है। अमेरिका में उनके कुछ मिनटों के भाषण ने पूरे अमेरिका को उनका शिष्य बना दिया। उनके भषण की शुरूआती पंक्ति ‘मेरे अमेरिकी भाई व बहनों’ ने जैसे पूरे अमेरिका को दिवाना ही कर दिया था। उनकी भाषा व ज्ञान को देखते हुए अमेरिकी मीडिया ने उन्हें ‘साइक्लाॅनिक हिंदू’ का नाम दिया। स्वामी जी एक प्रतिभावन व्यक्ति थे जिनका पूरे विश्व ने सम्मान व प्यार किया। अमेरिका से लौटने के बाद उन्होंने भारतवासियों को संबोध्ति करते हुए कहा था ‘‘नया भारत निकल पड़े मोची की दुकान से, भाड़भंजे के भाड़ से, कारखाने से, हाट से, बजार से, निकल पड़े झाडि़यों, जंगलों, पहाड़ों, पर्वतों से’’। इसके बाद गांध्ीजी की जो आजादी की लड़ाई में देश का समर्थन मिला, वो स्वामी जी के इस आह्वान का ही परिणाम था। उन्होने भारत की आध्यत्मिकता से परिपूर्ण वेदान्त दर्शन अमेरिका व यूरोप के हर देश में पहंुचाया। उन्होंने जहां एक तरपफ हिन्दूत्व को विश्व के सामने रखा वहीं दूसरी तरपफ पुरोहितवाद, ब्रहमणवाद, धर्मिक कर्मकाण्ड व रूढि़यों की खिल्ली भी उड़ायी। स्वामी जैसे व्यक्तित्व वाले महापुरूष न ही हुआ है और न ही होगा। उनकी तारिपफ व व्यक्तित्व में शब्द कम पड़ जाते हैं। आखिरकार उनके व्यक्तित्व व कार्यशैली को शब्दों के जाल में नहीं बुना जा सकता है।
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