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बरसात के मौसम में तुम, मैं और यह सफऱ!

"रख सकते हो तुम मेरे कंधे पर हाथ" सर के पीछे विकास का हाथों को महसूस कर रोशनी ने कहा...

 "अधिकार नहीं है मुझे... I don't have the rights" हाथों को झट से नीचे खींचते हुए विकास ने कहा था


 "अच्छा!! ज़रूरी है कि हर किसी चीज़ के लिए राइट हो ?"
"हहम्म...हाँ! ज़रूरी है"

दोनों चुप चाप चलने लगे... दोनों को जल्दी थी। विकास को ऑफ़िस पहुँचना था और रोशनी को घर। लेकिन बावजूद इसके दोनो के क़दम जैसे बढ़ ही नहीं रहे थे। कॉफ़ी हाउस से मेट्रो की तरफ़ बढ़ते उनके क़दम के बीच कहीं ख़ामोशी, कोई सन्नाटा था! इस बीच दोनों के हाथों की छोटी ऊँगली कब एक दूसरे के साथ हो गयी पता ही नहीं चला। राजीव चौक से रोशनी को घर जाने के लिए येलो लाइन की मेट्रो पकड़नी थी तो विकास को ऑफ़िस जाने के लिए स्टेशन के बाहर से ऑटो! रोशनी ने ज़िद्द की कि मुझे मेट्रो स्टेशन के अंदर तक तो छोड़ दो।

 "यार मुझे ऑफ़िस के लिए लेट हो रहा है... मुझे निकलना है..."
"अच्छा... तो चल तेरे ऑफ़िस चलते हैं। मैं वहाँ से मेट्रो ले लूँगी "
"ठीक है... This is good"
मुँह बनाते हुए रोशनी ने कहा,"But यार... छोड़ मैं यहीं से जा रही हूँ"
"अबे दो मिनट रूक... " रोशनी को कहते हुए विकास फटाफट ऑटो वालों की और बढ़ गया। "भईया मंडी हाउस चलोगे"...

दिल्ली की जिन सड़कों पर गाड़ियों का शोर शराबा होता है, गाड़ियाँ हॉर्न बजाती रहती हैं... आज वहाँ सन्नाटा पसरा था... ऑटो के पिछली सीट पर बैठे दो दोस्त जैसे अजनबी थे।

"क्या हुआ...?" रोशनी ने पूछा
"कुछ तो नहीं.."
"मतलब तुम बात नहीं करोगे मुझसे.." रोशनी ने दबती आवाज़ में विकास को देखते हुए कहा। ख़ुद को रोशनी की तरफ़ घुमा कर विकास ने कुछ भी बोलने से पहले रोशनी की आँखों को देख लेना बेहतर समझा... उन झील सी आँखों में बादल उतर आए थे! इस वक़्त विकास को ख़ामोशी ही ज्यादा सही जवाब लगी... नम होती उन आँखों को विकास से हटा रोशनी सामने देखने लगी थी...

"देख यार ऐसे नहीं चल सकता सब..." झुँझलाते हुए विकास ने कहा.. "अबे यार! ये सब ऐसे नहीं चल सकता... हर पल एक दूसरे के साथ होना, ज़्यादातर साथ घूमना-फिरना, हँसना-रोना... देख हम दोनों को बहुत सी चीज़ों पर फ़ोकस करना है, ढेरों काम करना है... मैं नहीं चाहता कि इस बीच हम किसी कश्मकश को लेकर चलते रहे... साफ़ कर हमारे बीच क्या है..."

रोशनी की आँखें एक टक विकास की आँखों को देख रहीं थी... साँसे भारी थी उसकी, पता नहीं था कब आँखों के बादल बरस पड़ेंगे... एक गहरी साँस से लेकर ख़ुद के अंदर उठ रहे ख़यालों के तूफ़ान को रोक लेना चाहती थी रोशनी.... " यार... जो जैसा चल रहा है उसे वैसे चलने दे ना...."

"यार तू समझने की कोशिश कर... हम ऐसे नहीं चल सकते हैं... कल को ये ना हो कि हमारे बीच क़ुछ था ही नहीं... और अगर कुछ है ही नहीं तो सब नॉर्मल रहे... इतना हो हल्ला क्यों..." रोशनी के हाथ को अपने हाथ से हटाते हुए कहा था...  

"मतलब अब हम बात नहीं करेंगे, ऐसे रहेंगे भी नहीं" कहते हुए उन झील सी आँखों से पानी बरसने लगा था... हर बार रोशनी की शिकायत होती थी कि ऐसी बरसात मे विकास केवल रुमाल आगे कर देता है... उसके आँसू नहीं पोंछता है, उसे गले नहीं लगता है...

आज भी उसने जेब में हाथ डाल रुमाल निकलना चाहा... लेकिन आज उसके हाथ रोशनी की बंद आँखों पर थे... आँखों की उस बरसात पर फिर पहरा लग गया था... ऐसी बरसात में दोनों बचपन की पोयेम्स और कविताएँ गाने लगते थे...

रोशनी के होंठ किसी मूवी का गाना बुदबुदाने लगे थे... ऑटो विकास के ऑफ़िस के पास पहुँच गया था... बरसात पर पहरा कसने लगा था...  

ख़ुद के लिए, अपने अंदर के तूफ़ान को रोक लेने के लिए रोशनी से एक बार बचपन की पोएम सुनना चाहता था विकास... राजीव चौक से मंडी हाउस का यह सफ़र जल्द ही ख़त्म हो गया...

विकास ऑटो से उतरा तो पिछली सीट पर बैठी लड़की ने ट्विंकल ट्विंकल लिटल स्टार... गुनगुनाना शुरू कर दिया... ऑटो आगे बढ़ गया... सीट पर बैठी लड़की भीड़ में कहीं खो गयी... और विकास लेट हो चुका था...

Comments

  1. काफी दिनों के बाद लिखा है आपने और बहुत ही शानदार लिखा है। आशा है आप ऐसे ही हमें अपने लेखों द्वारा रोमांचित करते रहेंगे।

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    1. अपने शब्दों के लिए शुक्रिया दोस्त, कोशिश रहेगी को आगे भी लिखता रहूं...

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