Skip to main content

अराजक, अभिमानी व अपरिपक्कव राजनेता

अराजक, अभिमानी व अपरिपक्कव राजनेता



सरकार बनते ही जन लोकपाल मिला, महिलाओं की सुरक्षा हेतु कमांडों पफोर्स, कांग्रेसी व शीला दीक्षित जेलों में बंद हुए व ऐसे ही ढेरों बेबुनियादी वादों को पूरा करते हुए दिल्ली के मुख्यमंत्राी राजधनी की राजनीति में एक नया मोड़ ले आए हैं। सरकार में न होने से पहले इमानदार केजरीवाल सीबिआई को मुक्त करने की बात कहते थे, अपने प्रचार में भी शीला दीक्षित को दिल्ली बलात्कार में लाचार बता और सड़कों पर प्रदर्शन करके वोट मंागते थे। ऐसे ही तमाम मुद्दों पर ख़रा उतरने के लिए ईमानदारी के ठेकेदार अरविंद केजरीवाल और उनके मंत्राी रात-रात भर जाग कर कार्य कर रहे हैं। वो इस बात का भी खास ख्याल रखते हैं कि उनके यह तमाम कर्यशैली आवाम को पता चल सके तभी तो बिना मीडिया के कोई भी कदम नहीं उठाते हैं। राजधनी के आदरणीय कानून मंत्री सोमनाथ भारती ने हाल ही में युगांडा की महिलाओं के घर पर मध्यरात्राी में हमला बोल दिया। यदि उन विदेशी महिलाओं की मानें तो हमारे इमनदार मंत्राी जी ने उनके साथ न केवल अभद्र व्यवहार किया अपितु मार पीट भी कि। भारत के संविधन में यह स्पष्ट रूप से लिखा है कि सूर्य उदय से पहले और सूर्य अस्त के बाद किसी भी महिला के साथ ऐसा व्यवहार नहीं किया जा सकता है। परंतु यह क्या हुआ राजधनी के कानून मंत्राी ने इसका सर्वजनिक रूप से उल्लंघन करते हुए दिल्ली पुलिस को भी इसके लिए आदेश दे डाला। जब मंत्राी जी के आदेशों का पालन न करते हुए पुलिस वालों ने इसका मान रखा तो मंत्राी जी बौखला उठे। दिल्ली के जनता दरबार से भाग खड़े हुए खिसियाए मुख्यमंत्राी को जब इसका ज्ञात हुआ तो उन्हें पुलिस की लपारवाही और राजधनी के तीन बलात्कार याद आ गए। उन्होंने उन विदेशी महिलाओं से मिलने तक का प्रयत्न नहीं किया। वो अपनी नकामी व पार्टी के नेताओं की ध्ूमील छवि बचाने के लिए अपने पुराने अंदाज में लौट आए। वो भूल गए की वो मुख्यमंत्राी हैं और लौट आए अपना मनपंसद खेल खेलने। जी हां मनपसंद खेल- ध्रना प्रदर्शन, परंतु इस बार उनका पसंदीदा पर्यटक स्थल रामलिला मैदान व जंतर मंतर से बदल कर रेल भवन के पास विजय चैक हो गया। ऐसे में यह प्रतित होता है कि वो सरकार कि नाकामी से जनता व मीडिया का ध्यान भंग करने के लिए ही विजय चैक पर ध्रना देने के लिए स्थायी रूप से बैठ गए। ध्रना प्रदर्शन के खेल में माहिर केजरीवाल ने पहले सिर्पफ अपने मंत्रियों के साथ ध्रने की बात कही थी परंतु जब लगा की पब्लिसिटी स्टंट पेफल हो रहा है और लोकसभा चुनाव भी जल्द हैं तो क्यों न कोई नया पैंतरा खेला जाए। शायद ये ही अनुमान लगा कर केजरीवाल व टीम ने पूरे देश का आह्वान कर दिया। समर्थकों को काॅल व मैसेज कर कर के बुलाया गया। भले ही इसके चलते वहां अराजकता व हिंसा पफैलती परंतु उन्हें ये सब नहीं सुझ रहा था उन्हें तो अपना पब्लिसिटी स्टंट कामयाब करना था। सुरक्षा के मद्देनजर और अराजकता के रोकथाम हेतू केंद्र सरकार को कई सड़कें बंद करनी पड़ी, कई दफ्रतरोें में काम नहीं हुआ, कई मेट्रो स्टेशन बंद करने पड़े और इन सबके के कारण दिल्ली वासियों को कापफी दिक्कतें झेलनी पड़ी परंतु मंत्राी जी को तो इसे कोई मतलब नहीं है। उनमें मुख्यमंत्राी पद का अंहकार आ गया है तभी तो उनके मुख से अब अपने से 25 वर्ष बड़े और आदरणीय सुशील कुमार शिंदे के लिए शिष्टाचार के विरूध् अपतिजनक स्वर सुनने को भी मिले। जब उनके मंत्राी के खिलापफ एपफआईआर हो गया तो उन्हें पिछले 3 बलात्कार याद आए वो भूल गए क्या उनके 20  दिनों के ही सरकार राज में 94 बलात्कार हुए हैं। उनसे जब एक पत्रकार ने उनके द्वारा किए जा रहे प्रदर्शन से गणतंत्रा दिवस के समारोह खराब होने की बात कही तो मंत्री जी बौखला गए। उनके अनुसार गणतंत्रा केवल विआईपी लोगों के मनोरंजन हेतु झाकियों का कार्यव्रफम होता है। उन्होनें कहा की उनके इस ध्रने से लोग व मंत्राी सड़कों पर हैं और ये ही गणतंत्रा है। यदि ऐसा है तो क्या उनके अनुसार मंत्रियों का काम छोड़कर, सड़कों पर सोना, अराजकता पैफलाना, आम जनता को असुविध पंहुचाना व अन्य दफ्रतरों में काम न होने देना ही गणतंत्रा है? शायद मुख्यमंत्राी को जानने की जरूरत है कि गणतंत्रा में जनता के द्वारा चुनी गई, जनता की सरकार, जनता के लिए ही कार्यरत रहती है। जहंा तक बात है गणतंत्रा दिवस की तो क्या इसमें राज्य सरकार का कोई योगदान नहीं होता जो केजरीवाल इस समय ध्रने पर बैठ गए? शायद मुख्यमंत्राी जी भूल गए की जिस संविधन का वो और उनके मंत्राी उल्लंघन करते रहते हैं वो देश को इसी दिन मिला था। यह केवल झांकियों के प्रदर्शन का उत्सव नहीं अपितु देश की सिमाओं पर तैनात सैनिकों व आजादी दिलाने वाले महापुरूषों को सम्मान प्रकट करने का भी पर्व है। ध्रने व प्रदर्शन के मंझे हुए खिलाड़ी केजरीवाल को जब लगा की उनकी मांगे पुरी नहीं हो सकती तो वो बीच के रास्ते पर ही चल पड़े। परंतु केजरीवाल के ऐसे कदमों पर कई सवाल खड़े होते हैं। क्या ये सब एक पब्लिसिटी स्टंट था? केजरीवाल अपने मंत्री के खिलाफ अपफआईआर के सामने आने के बाद ही क्यों ध्रने पर बैठे? यदि वो पुलिस व्यवस्था को सुधरने के लिए ध्रने पर उतरे थे तो वो केवल दो पुलिसवालों को छुट्टी दिलाकर क्यों मान गए? यहां एक तरपफ उन्होंने पूरी दिल्ली को असुविध देकर, दफ्रतरों को बंद करवाकर अपने लिए सुर्खियां बटौर लि तो वहीं दूसरी तरपफ कई अध्यापक उनके सचिवालय के सामने एक हफ्रते से ध्रना दे रहें हैं जो उन्हें नजर भी नहीं आ रहे हैं। क्या केजरीवाल अब बेबस हो गए हैं? क्या वो उफब चुके हैं? कहीं वो अपने ही वादों व कार्यशैली से हताश तो नहीं हो गए हैं? एैसे ही तमाम जनता के सवाल राजधनी के नए नवेले मुख्यमंत्री से जवाब का इंतजार कर रहे हैं। 

                               रजत त्रिपाठी

Comments

Popular posts from this blog

The Gas Chamber Delhi : Looser or Winner!

From 1st of Jan. 2016 the odd and even numbered vehicles will ply on Delhi roads on alternate days. The decision of Capital's government is much appreciable.  Don't abandon the next generation from fresh air. ( Image Source ) There are few places in the world where the same had been tried but it couldn't last long. Delhi has the challenge to manage with new rule. Delhi will face many problems too in making this initiative successful. Many will buy vehicles with odd and even number as Bagota, capital of Columbia and Mexico City. Might Delhi government would shut down it with in one or two day as happened in Pairs in 1997 and March 2014. Some Delhiite may spit on government for not improving public transport and making such new rule but this is the time to make a clear stand against pollution. Making effort for making gas chambered Delhi pollution free will catch the eyes from the world. It is the time for all Indians, specially Delhiites to make this experiment su...

सरकारी प्रेम की कहानी!

इस मॉडर्न हो चुके जमाने में भी कई सदियों पीछे थी उनकी सो कॉल्ड प्रेमकथा। उसे केंद्र सरकार की योजनाओं की तरह फंड तो मिलता था लेकिन हकीकत में उसका उपयोग न हो पाता था। वट्सएप और फेसबुक की दुनिया से दोनों मुखातिब तो थे। लेकिन पुरानी फिल्मों की तरह मॉडर्न पत्राचार ब्लॉग के जरिए ही होता था।  वह रात में उल्लू की तरह बैठकर लिखता तो वह वहां सात समुद्र पार भोर में उठी किसी गौरेया की तरह उसे पढ़ती।  कभी गुस्साती या शर्माती तो 12 रुपये प्रति मिनट की कॉल दर से यहां इस उल्लू को नींद से जगा देती। कभी हफ्ते-15 दिन में दोनों अपनी स्टोरी के लो बजट को भूल, 80-90 मिनट तक बातें ही करते रहते। पता नहीं क्या मिलता था ऐसी बातों से...  खैर, अब न और पत्राचार होगा और न ही कॉल रेट की टेंशन... गुड बाय... टेक केयर, विथ लव फ्रॉम इंडिया

अंधियारी रात और रोशनी...

शादी हुए एक साल से ज्यादा हो गया है.. लेकिन आज भी न जानें क्यों विकास को कहीं न कहीं लगता है कि कभी न कभी तो रोशनी लौट आएगी… लौटा आएगी विकास के पास शायद अपने वादों को निभाने या फिर उसे मासूम प्यार के लिए जो न रिश्ते समझते थे और न ही परिस्थिति, समझते थे तो केवल प्यार… रोशनी की शादी हो जाने के बाद भी विकास आगे न बढ़ पाया था लेकिन इस बात का एहसास ही उसे करीब दो साल बाद हुआ. रोशनी ने जब फोन पर कहा कि किसी और के साथ उसका रिश्ता तय हो गया तो विकास ने ठान लिया कि अब न वह रोशनी को फोन करेगा और नहीं रोशनी की निजी जिंदगी में दखल देगा… मन में ऐसा ठन विकास ने करीब सालभर रोशनी से बात करने की कोशिश तक न की... रोशनी की शादी हो जाने के बाद कही महीनों तक वह खुद को समझाता रहा कि रोशनी नहीं तो कोई और कभी न कभी अपने हाथ में दिया लिए उसकी अंधियारी जिंदगी में आएगी… लेकिन उसे कहां पता था कि वह अब तक रोशनी से आगे बढ़ ही नहीं पाया था… वह अब भी वहीं खड़ा था.. खड़ा था उस रोशनी के इंतजार में जिससे उनसे बुढ़ापा साथ बितानी का वादा लिया था… उस रोशनी के इंतजार में जिसके जिस्म से नहीं बल्कि उसके हो...