एक ऐसा नया कल...
सूरज की लालिमा में डूबा समां हो,
फूलों की खिल-खिलाती हंसी हो,
न कोई बंधन न कोई सिखवा हो,
बस एक ऐसा ही नया कल हो...
जहाँ चहुँ ओर फैली बेफिक्री हो,
जहाँ मुस्कुराने के कई वजह हो,
जहाँ उड़ने को आज़ाद गगन हो,
बस एक ऐसा ही नया कल हो...
खुशियाँ जहाँ मोहताज़ न हो,
जहाँ ज्ञान- अन्धकार न हो,
जहाँ मन में भय-संशय न हो,
बस एक ऐसा ही नया कल हो...
जहाँ उबाल मारते अरमान हो,
फैला हर ओर रंग प्यार का हो,
और कुछ भले ही हो न हो
बस एक ऐसा ही नया कल हो...
रजत त्रिपाठी कच्ची कलम की श्याही से.…
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