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राजनीति का दूसरा छोर...

दि न पर दिन बिते जा रहे हैं, भगवा रंग में रंगी सरकार देश भर में सरपट दौड़े जा रही है... लोकसभा के बाद से हरियाणा, महाराष्ट्रा और अब जम्मू कश्मिर के साथ साथ झारखंड के नतिजे साफ कहते हैं कि देश में भाजपा लहर है। यदि इन सभी नतिजों को भी देख कोई मोदी लहर या भाजपा लहर को खारिज करता है तो वो कुछ और ही होगा राजनीतिक पंडित नही होगा। बहरहाल यहां मुद्दा किसी के राजनीतिक पंडित होना नही है। यह मुद्दा है देश की राजनीति का... देश में सरकर बनी और मंत्री काम कर रहे हैं। अब राज्य चुनावों में मिलने वाली जितों का श्रेय भाजपा चाहे मोदी को दे या फिर केंद्र सरकार के काम को लेकिन एक बात तय है कि इस वक्त देश की राजनीतिक पृष्णभूमि पर केवल भगवा रंग की स्याही ही चल रही है। लेकिन जिस तरह किसी भी लाईन में केवल एक बिंदु नही होता ठीक उसी तरह लोकतंत्र में कोई एक दल नही रह सकता है। यहां समझने की जरूरत यह है कि अगर देश में केवल एकमात्र भगवा परचम फहराता ही रहता है तो इसके सामने लोकतंत्र का दूसरा बिंदू कौन होगा? इतने सालों से देश को लूटने वाली या सेवा करने वाली कांग्रेस तो मैदान से बाहर हो चुकी है। राहुल गांधी के...

मीडिया और प्रधानमंत्री मोदी!

Photo Credit : Outlook India प्र धानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश में सरकार गठन के बाद से ही देश के तथाकथित चौथे स्तंभ पर शिकांजा कसना शुरू कर दिया है। इसका पहला प्रमाण तब मिला जब अपनी विदेश यात्राओं पर उन्होंने पत्रकारों की संख्या को काट दिया। प्रधानमंत्री के साथ विदेश दौरों पर जाने वाली पत्रकारों की टोली की परंपरा को नरेंद्र मोदी ने खत्म कर दिया। इस कदम के दो पहलुओं में से एक पहलु को लोगों ने सराहहा तो दूसरे पहलु पर ध्यान न देना वाजिब नहीं है। प्रधानमंत्री के साथ सरकारी खजाने पर विदेशों में मजे लुटने वाले पत्रकारों को रोक प्रधानमंत्री ने भले ही जनता के टैक्स से होने वाले खर्चों में थोड़ी कटौती कर दी हो लेकिन बावजूद इसके प्रधानमंत्री मोदी के इस कदम से मीडिया के साथ साथ देश के आवाम को अप्रतयक्ष रूप के काफी बड़ा नुकसान हो रहा है। मीडिया केवल खबरों को पहुंचान का काम ही नही करी बल्कि सरकार व जनता के बीच संवाद भी स्थापित करती है। एक ऐसा संवाद जिसमें दोनों तरफों से संवाद की संभावाना हो, जहां दोनों तरफ के विचारों व संवादों को एक दूसरे तक पहुंचाया जा सके। लेकिन विदेश यात्राओं में व्यस्त रह...

कॉलेज का पहला दिन, कैसे करें इंजॉय

कॉलेज का पहला दिन, कैसे करें इंजॉय   दिल्ली के सभी कॉलेजों में तकरिबन एडमिशन पूरे हो चुके हैं और सभी स्टूडेंटस अपने कॉलेज को लेकर काफी उत्साहित हैं। नए कॉलेज को लेकर सभी स्टूडेंट्स के मन में ढेर सारी उम्मीदों के साथ कुछ सवाल व डर भी हैं। जहां एक ओर अच्छे दोस्त, अच्छा फ्रेंड सर्किल, अच्छे माहौल की उम्मीद सभी स्टूडेंटस कर रहे हैं। तो वहीं दूसरी ओर अकेलापन, अनजानी जगह व रैगिंग का डर काफी स्टूडेंट्स को अंदर ही अंदर डरा रहा है। ऐसे में स्टूडेंट्स को घबराने की जरूरत नहीं है। उन्हें बस कुछ बातों का ख्याल रखना है और वो अपनी कॉलेज लाइफ खुल कर इंजॉय कर सकते हैं। रैगिंग से घबराएं नहीं : रैगिंग फ्रेशर स्टूडेंट्स और सिनियर्स के मेल मिलाप का एक तरीका है। लेकिन अब इसे पूरी तरह बंद कर दिया है, इसलिए फ्रेशर्स को इससे डरने की कोई जरूरत नहीं है। रहें कॉन्फिडेंट : कॉलेज के पहले दिन से ही कॉन्फिडेंट रहें। अपने कॉन्फिडेंस को मेनटेन करने की कोशिश करें। लेकिन इसका मतलब यह बिल्कुल भी नहीं है कि आप घमंड में रहें और मिस्टर या मिस कॉन्फिडेंट बनने की बजाए आप मिस्टर या मिस एटिट्य...

इन बूढ़ी आँखों ने देखा है.…

इन बूढ़ी आँखों ने देखा है.…  कामयाब चेहरों को खून में नहाये देखा है मैंने, फेकने वालों को उनके ही घरों में पीटते भी देखा है मैंने, इस बूढी आँखों की झुर्रियों पर मत जाओ जालिम, पसीने से मंज़िलों के पते  बदलते देखा है मैंने ... आशिक़ी में पहलवान शेरोन को रोते देखा है मैंने, मोहब्बत में दहाड़ती कलियों को भी देखा है मैंने, इस बूढी आँखों की झुर्रियों पर मत जाओ जालिम, आशिक़ी में बेस बसाये घरों को उजड़ते देखा है मैंने ... कई सावन के झूलों में झूलती हंसी को देखा है मैंने, कई मासूमों को निर्मम पीटते भी देखा है मैंने, इस बूढी आँखों की झुर्रियों पर मत जाओ जालिम, कालिख से नहाये हीरे को भी चमकते देखा है मैंने ... भोर रवि की धीमी किरणों में कलियों को मुरझाते देखा है मैंने, चाँद की रोशिनी से भी दहकते जवालामुखी को देखा है मैंने, इस बूढी आँखों की झुर्रियों पर मत जाओ जालिम, तारों को भी आसमान से जमीं पर उतरते देखा है मैंने ... गले लगने वालों को पीठ में खंज़र घोंपते देखा है मैंने  बाहर से आये, मरहम लगाते पैगम्बर को भी देखा है मैंने, इस ब...

मैं डरता हूँ

मैं डरता हूँ  मैं डरता हूँ इस दिन रात बदलती दुनिया से, मैं डर जाता हूँ इस सीमेंट के बढ़ते जंगल से, नोंचती है मुझको बढ़ती भीड़ में भी तन्हाई, जहाँ आधुनिकता के नाम पर बड़ियां चलती संग बन परछाईं।  मैं डरता हूँ इस विकास के दानव से,  मैं डर जाता हूँ इस धरती माँ को खंगालते मानव से, रूह कांपती है मेरी देख उजड़ते खेतों को, जहाँ लहलहाती थी फसलें देख वहाँ बनते पैसे के महलों को।  मैं डरता हूँ इस बिलखती गंगा, जमुना, सरस्वती के मौत मांगने से, मैं डर जाता हूँ इनके निर्मल आँचल के कहीं खो जाने से, आँखों से बहती है खून की नदियां इनकी बेबस छटपटाहट पर, जहाँ धूं-धूँकर जल रही इनकी ही अस्थियां अपने ही घाटों पर।  मैं डरता हूँ इस चूहे से दुबकते बाघ,शेर, चीते से, मैं डर जाता हूँ एसी कमरों में बैठे बढ़ई के फीते से, अपने ही घर में बेघर तलाशता हूँ जंगल के आँगन को, जो भेंट चढ़ गया लालची बढ़ई की नीची दबी खानन को।  रजत त्रिपाठी की कच्ची कलम की श्याही से... 

एक बार फ़िर…

एक बार फ़िर…  भारतीय समाज की सशक्त नारी जिसे दिवाली जैसे अवसरों पर पूजा जाता है और रोज़ाना....  एक बार फिर उसकी इज्जत को तार-तार कर दिया गया। दरिंदो ने सरेआम उसकी आबरू को नौंचा और जनता मूक दर्शक बन देखती रही। यह दर्दनाक घटना है मध्य प्रदेश के खंडवा जिले का जहां एक महिला को फिर महाभारत की द्राैपदी बनाने के लिए मजबूर होने पड़ा। महाभारत की भांति इस पुरूष प्रधान समाज में भी अबला नारी बिलखती रही, तिलमिलाती रही परंतु किसी ने उसकी एक न सुनी। हस्तिनापुर की जगह खंडवा में हुई यह अशोभनीय घटना हैवानियत ओैर दरिंदगी से पूर्ण रही। यहाँ  बस र्फक सिर्फ इतना था कि इस बार द्राैपदी को हारने के लिए न तो पांडव थे और न ही बचाने के लिए कोई कृष्ण। खांडवा  जिले में एक पति ने ही अपने रिशतेदारों के साथ मिलकर अपनी अर्धांग्नी की इज्जत को तार तार कर दिया। सभी 10 के 10 हैवानों ने उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया और जब हवस के इन पुजारियों का मन जब इससे भी ना भरा तो उस महिला को सरेआम नंगा घुमाया गया।  दर्द से ट...

दहकती भारतीय रेलवे

दहकती भारतीय रेलवे गर्मियों  का मौसम आते ही भारतीय रेलवे पर भीड़ का पहाड़ टूट पड़ता है। इस मौसम के आते ही लगता है मानो जैसे किसी ने बांध् से पानी छोड़ दिया हो और वह अपनी पूरी रफ्रतार से आगे बढ़ रहा हो। देश की राजधनी दिल्ली में चार प्रमुख रेलवे स्टेशन हैं । जहां पर हमेशा भीड़ का तांता लगा रहता है। आनंद विहार, नई दिल्ली, पुरानी दिल्ली व हजरत निजामुद्दीन सदैव भीड़ से ठसा-ठस भरा रहता है। ऐसा नहीं है कि यह एक मौसम या इसी वर्ष की समस्या है। यह समस्या है हर वर्ष, हर मौसम और हर रोज की। इसी कारण रोजाना यात्रियों के लहु-लुहान व मौत तक की खबर आती रहती है। ट्रेनों के प्लेटपफार्म पर आते ही उसके भीतर प्रवेश करने के लिए यात्रियों में जंग छिड़ जाती है। यह जंग स्टेशन में घुसने से लेकर ट्रेन के अंदर घुसने तक जारी रहती है। आज कल यह जंग इतना विकराल रूप ले लेती है कि यात्रियों को लहुलुहान तक हो जाना पड़ता है। इस जंग के खत्म हो जाते ही आगाज होता है टेªन के भीतर की जंग का। सफर करने के लिए दो गज जगह तलाशने का, जहां वो खड़े हो सफर तय कर सके। कई सौ की संख्या में लोगों को भारी भरकम रकम अदा करने पर भी मिलों का स...