Skip to main content

Posts

Showing posts from March, 2014

करुणा...

करुणा  करुणामयी करुणा बोली करुणा से, श्याही का रंग दो मुझको भी घिस रा हूँ कागज कलाम से तो सोचा रंग दूं इनको भी... तो सुनो, लिख नहीं रहा हूँ तुझको, बता रहा हूँ तेरे बारे में खुद को देखा है करुणा का सागर तुझमें  तुझमें ही देखी है सशक्त नारी कि शक्ति  देखा है खिलखिलाते फूलों कि हंसी तुझमें  तुझमें ही देखी है सच्ची प्रेयसी कि भक्ति  लिख नहीं रहा हूँ तुझको, बता रहा हूँ तेरे बारे में खुद को.…  सूर्य सा ,चमचमाता तेज है तुझमें  तुझमें झलकती है चन्द्रमा कि शीतलता  केशुओं के बीच घबराता बच्चा भी है तुझमें तुझमें ही है डट कर लड़ने कि क्षमता  लिख नहीं रहा हूँ तुझको  बता रहा हूँ तेरे बारे में खुद को …  ग़ालिब को इक़बाल बनाने कि इनायत है तुझमें  है तू उफान मारते अरमानो का भी समंदर  एक गमगीन हो चूका कोना भी है तुझमें  पर मदमस्त जीती है यारों के सफ़र में लिख नहीं रहा हूँ तुझको, बता रहा हूँ तेरे बारे में खुद को …