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Showing posts from March, 2017

नदी तुम, मैं पत्थर

I wrote these lines in Rishikesh.   "वो नदी सी बहती है, मैं पत्थर सा मिल जाता हूं वो आगे नई हो जाती है, मैं वहीं खड़ा रह जाता हूं ताकत है, शक्ति है वो न जाने कितनों की आफत है, मिलती प्यार से सहलाती है, छूकर किनारा मेरा सब ले जाती है माया है, छाया है न जाने कितनों की वो काया है, मुझे पुचकार कर भी न जाने क्यों उसने ठुकराया है"