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नदी तुम, मैं पत्थर

I wrote these lines in Rishikesh.   "वो नदी सी बहती है, मैं पत्थर सा मिल जाता हूं वो आगे नई हो जाती है, मैं वहीं खड़ा रह जाता हूं ताकत है, शक्ति है वो न जाने कितनों की आफत है, प्यार से मिलती है, छूकर किनारा मेरा सब ले जाती है माया है, छाया है न जाने कैसी वो काया है, पहचानकर कर भी न जाने क्यों उसने ठुकराया है"