Skip to main content

Posts

Showing posts with the label change

आखिर अब आगे क्या …

जोरों-शोरों से चुनावी बिगुल बजा, महारथी मैदान में उतर आए, भीषण गरजना के साथ रणभूमि सजी और अब यह अपने समापन की और परंतु क्या वकई यह युद्ध समाप्त हुआ। क्या इसके उपरांत कोई नया बिगुल नहीं बजेगा, क्या कोई नया रण आरंभ नहीं होगा, क्या राष्ट्र की राजनीतिक सरजमीं ठंडी हो जाएगी। ऐसे ही तमाम सवाल देश के दिल में उफ्फान मार रहे हैं। आखिर अब नई सरकार बनने के बाद आगे क्या। जिस चुनावी लहर से देश ग्रस्त था, उसके समापन का रंग कैसा होगा। यह देखने के लिए पूरा विश्व उत्सुक है और उनका उत्सुक होना भी लाज्मी है। जो जन समर्थन इस चुनावी समर में दिखा, वह पहले कभी भी देखने को नहीं मिला। मतदान केंद्रों पर उमड़ी मतदाताओं की भीड़ यह साफ बायां कर रही थी कि जनादेश में जागरूता, कामनाएं, उम्मीद, और आशाएं अजागर हो उठीं हैं। वो एक बेहतर कल, एक बेहतर भविष्य और तमाम झंझटों से मुक्त एक समाज चाहता है। पर क्या चुनावी नतीजों का सूरज मतदाताओं की उम्मीद को ज्योतिर्मय पायेगा? मतदाताओं ने जिस जोश, उत्साह, जनसमर्थन से एकजुट होकर राष्ट्र हित के लिए मतदान किया, क्या वो नतीजों के बाद अदृशय हो जायेगा? सड़कों पर उतरी...

अपना ही घर लूटता रहा…

अपना ही घर लूटता रहा…  मैं दुनिया बचाने का दावा करता रहा, न जाने कितने जंग मै लड़ता रहा, पर देखा न मैंने अपना ही मोहल्ला   अपना ही मोहल्ला लूटता रहा जमाना बदलने का दावा मैं ठोकता रहा, देश के ठेकेदारों को चुनौतियां देता रहा, पर भूल गया अपने ही गलियों के गड्ढे  और अपना ही घर लूटता रहा लड़ने सड़कों पर अकेले निकलता रहा, खिलाफत परम्पराओं, फतवाओं की करता रहा पर दिखा नहीं अपने गाँव का गन्दा क़ानून और यहाँ अपना ही गाँव लुटता रहा। दुन्ध्ले जब जीत का रास्ता होने लगा, दिल में हार का डर जब सताने लगा, फिर वापस एक नज़र मुड़कर देखा  और पाया यहाँ अपना घर लूटता रहा। घर लौट घर की लड़ाई जीत गया, बात धीरे धीरे मैं पते की समझ गया ज़बाने की खातिर पहले बीज ही अच्छे बोने होंगे,  वरना झूठे दावों से लूटते घरों के ही नज़ारे होंगे।  रजत त्रिपाठी की कच्ची कलम कि श्याही से.…