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Showing posts from 2014

राजनीति का दूसरा छोर...

दि न पर दिन बिते जा रहे हैं, भगवा रंग में रंगी सरकार देश भर में सरपट दौड़े जा रही है... लोकसभा के बाद से हरियाणा, महाराष्ट्रा और अब जम्मू कश्मिर के साथ साथ झारखंड के नतिजे साफ कहते हैं कि देश में भाजपा लहर है। यदि इन सभी नतिजों को भी देख कोई मोदी लहर या भाजपा लहर को खारिज करता है तो वो कुछ और ही होगा राजनीतिक पंडित नही होगा। बहरहाल यहां मुद्दा किसी के राजनीतिक पंडित होना नही है। यह मुद्दा है देश की राजनीति का... देश में सरकर बनी और मंत्री काम कर रहे हैं। अब राज्य चुनावों में मिलने वाली जितों का श्रेय भाजपा चाहे मोदी को दे या फिर केंद्र सरकार के काम को लेकिन एक बात तय है कि इस वक्त देश की राजनीतिक पृष्णभूमि पर केवल भगवा रंग की स्याही ही चल रही है। लेकिन जिस तरह किसी भी लाईन में केवल एक बिंदु नही होता ठीक उसी तरह लोकतंत्र में कोई एक दल नही रह सकता है। यहां समझने की जरूरत यह है कि अगर देश में केवल एकमात्र भगवा परचम फहराता ही रहता है तो इसके सामने लोकतंत्र का दूसरा बिंदू कौन होगा? इतने सालों से देश को लूटने वाली या सेवा करने वाली कांग्रेस तो मैदान से बाहर हो चुकी है। राहुल गांधी के

मीडिया और प्रधानमंत्री मोदी!

Photo Credit : Outlook India प्र धानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश में सरकार गठन के बाद से ही देश के तथाकथित चौथे स्तंभ पर शिकांजा कसना शुरू कर दिया है। इसका पहला प्रमाण तब मिला जब अपनी विदेश यात्राओं पर उन्होंने पत्रकारों की संख्या को काट दिया। प्रधानमंत्री के साथ विदेश दौरों पर जाने वाली पत्रकारों की टोली की परंपरा को नरेंद्र मोदी ने खत्म कर दिया। इस कदम के दो पहलुओं में से एक पहलु को लोगों ने सराहहा तो दूसरे पहलु पर ध्यान न देना वाजिब नहीं है। प्रधानमंत्री के साथ सरकारी खजाने पर विदेशों में मजे लुटने वाले पत्रकारों को रोक प्रधानमंत्री ने भले ही जनता के टैक्स से होने वाले खर्चों में थोड़ी कटौती कर दी हो लेकिन बावजूद इसके प्रधानमंत्री मोदी के इस कदम से मीडिया के साथ साथ देश के आवाम को अप्रतयक्ष रूप के काफी बड़ा नुकसान हो रहा है। मीडिया केवल खबरों को पहुंचान का काम ही नही करी बल्कि सरकार व जनता के बीच संवाद भी स्थापित करती है। एक ऐसा संवाद जिसमें दोनों तरफों से संवाद की संभावाना हो, जहां दोनों तरफ के विचारों व संवादों को एक दूसरे तक पहुंचाया जा सके। लेकिन विदेश यात्राओं में व्यस्त रह

कॉलेज का पहला दिन, कैसे करें इंजॉय

कॉलेज का पहला दिन, कैसे करें इंजॉय   दिल्ली के सभी कॉलेजों में तकरिबन एडमिशन पूरे हो चुके हैं और सभी स्टूडेंटस अपने कॉलेज को लेकर काफी उत्साहित हैं। नए कॉलेज को लेकर सभी स्टूडेंट्स के मन में ढेर सारी उम्मीदों के साथ कुछ सवाल व डर भी हैं। जहां एक ओर अच्छे दोस्त, अच्छा फ्रेंड सर्किल, अच्छे माहौल की उम्मीद सभी स्टूडेंटस कर रहे हैं। तो वहीं दूसरी ओर अकेलापन, अनजानी जगह व रैगिंग का डर काफी स्टूडेंट्स को अंदर ही अंदर डरा रहा है। ऐसे में स्टूडेंट्स को घबराने की जरूरत नहीं है। उन्हें बस कुछ बातों का ख्याल रखना है और वो अपनी कॉलेज लाइफ खुल कर इंजॉय कर सकते हैं। रैगिंग से घबराएं नहीं : रैगिंग फ्रेशर स्टूडेंट्स और सिनियर्स के मेल मिलाप का एक तरीका है। लेकिन अब इसे पूरी तरह बंद कर दिया है, इसलिए फ्रेशर्स को इससे डरने की कोई जरूरत नहीं है। रहें कॉन्फिडेंट : कॉलेज के पहले दिन से ही कॉन्फिडेंट रहें। अपने कॉन्फिडेंस को मेनटेन करने की कोशिश करें। लेकिन इसका मतलब यह बिल्कुल भी नहीं है कि आप घमंड में रहें और मिस्टर या मिस कॉन्फिडेंट बनने की बजाए आप मिस्टर या मिस एटिट्यूट बन जाए

इन बूढ़ी आँखों ने देखा है.…

इन बूढ़ी आँखों ने देखा है.…  कामयाब चेहरों को खून में नहाये देखा है मैंने, फेकने वालों को उनके ही घरों में पीटते भी देखा है मैंने, इस बूढी आँखों की झुर्रियों पर मत जाओ जालिम, पसीने से मंज़िलों के पते  बदलते देखा है मैंने ... आशिक़ी में पहलवान शेरोन को रोते देखा है मैंने, मोहब्बत में दहाड़ती कलियों को भी देखा है मैंने, इस बूढी आँखों की झुर्रियों पर मत जाओ जालिम, आशिक़ी में बेस बसाये घरों को उजड़ते देखा है मैंने ... कई सावन के झूलों में झूलती हंसी को देखा है मैंने, कई मासूमों को निर्मम पीटते भी देखा है मैंने, इस बूढी आँखों की झुर्रियों पर मत जाओ जालिम, कालिख से नहाये हीरे को भी चमकते देखा है मैंने ... भोर रवि की धीमी किरणों में कलियों को मुरझाते देखा है मैंने, चाँद की रोशिनी से भी दहकते जवालामुखी को देखा है मैंने, इस बूढी आँखों की झुर्रियों पर मत जाओ जालिम, तारों को भी आसमान से जमीं पर उतरते देखा है मैंने ... गले लगने वालों को पीठ में खंज़र घोंपते देखा है मैंने  बाहर से आये, मरहम लगाते पैगम्बर को भी देखा है मैंने, इस बूढी आँखों की झुर्रि

मैं डरता हूँ

मैं डरता हूँ  मैं डरता हूँ इस दिन रात बदलती दुनिया से, मैं डर जाता हूँ इस सीमेंट के बढ़ते जंगल से, नोंचती है मुझको बढ़ती भीड़ में भी तन्हाई, जहाँ आधुनिकता के नाम पर बड़ियां चलती संग बन परछाईं।  मैं डरता हूँ इस विकास के दानव से,  मैं डर जाता हूँ इस धरती माँ को खंगालते मानव से, रूह कांपती है मेरी देख उजड़ते खेतों को, जहाँ लहलहाती थी फसलें देख वहाँ बनते पैसे के महलों को।  मैं डरता हूँ इस बिलखती गंगा, जमुना, सरस्वती के मौत मांगने से, मैं डर जाता हूँ इनके निर्मल आँचल के कहीं खो जाने से, आँखों से बहती है खून की नदियां इनकी बेबस छटपटाहट पर, जहाँ धूं-धूँकर जल रही इनकी ही अस्थियां अपने ही घाटों पर।  मैं डरता हूँ इस चूहे से दुबकते बाघ,शेर, चीते से, मैं डर जाता हूँ एसी कमरों में बैठे बढ़ई के फीते से, अपने ही घर में बेघर तलाशता हूँ जंगल के आँगन को, जो भेंट चढ़ गया लालची बढ़ई की नीची दबी खानन को।  रजत त्रिपाठी की कच्ची कलम की श्याही से... 

एक बार फ़िर…

एक बार फ़िर…  भारतीय समाज की सशक्त नारी जिसे दिवाली जैसे अवसरों पर पूजा जाता है और रोज़ाना....  एक बार फिर उसकी इज्जत को तार-तार कर दिया गया। दरिंदो ने सरेआम उसकी आबरू को नौंचा और जनता मूक दर्शक बन देखती रही। यह दर्दनाक घटना है मध्य प्रदेश के खंडवा जिले का जहां एक महिला को फिर महाभारत की द्राैपदी बनाने के लिए मजबूर होने पड़ा। महाभारत की भांति इस पुरूष प्रधान समाज में भी अबला नारी बिलखती रही, तिलमिलाती रही परंतु किसी ने उसकी एक न सुनी। हस्तिनापुर की जगह खंडवा में हुई यह अशोभनीय घटना हैवानियत ओैर दरिंदगी से पूर्ण रही। यहाँ  बस र्फक सिर्फ इतना था कि इस बार द्राैपदी को हारने के लिए न तो पांडव थे और न ही बचाने के लिए कोई कृष्ण। खांडवा  जिले में एक पति ने ही अपने रिशतेदारों के साथ मिलकर अपनी अर्धांग्नी की इज्जत को तार तार कर दिया। सभी 10 के 10 हैवानों ने उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया और जब हवस के इन पुजारियों का मन जब इससे भी ना भरा तो उस महिला को सरेआम नंगा घुमाया गया।  दर्द से टूट चुकी, प्यास से छटपटाती, तिलमिलाती बेहोश महिला ने जब पानी मांगा, तो वैहशिपन पर उतारू उन दरिंदो ने

दहकती भारतीय रेलवे

दहकती भारतीय रेलवे गर्मियों  का मौसम आते ही भारतीय रेलवे पर भीड़ का पहाड़ टूट पड़ता है। इस मौसम के आते ही लगता है मानो जैसे किसी ने बांध् से पानी छोड़ दिया हो और वह अपनी पूरी रफ्रतार से आगे बढ़ रहा हो। देश की राजधनी दिल्ली में चार प्रमुख रेलवे स्टेशन हैं । जहां पर हमेशा भीड़ का तांता लगा रहता है। आनंद विहार, नई दिल्ली, पुरानी दिल्ली व हजरत निजामुद्दीन सदैव भीड़ से ठसा-ठस भरा रहता है। ऐसा नहीं है कि यह एक मौसम या इसी वर्ष की समस्या है। यह समस्या है हर वर्ष, हर मौसम और हर रोज की। इसी कारण रोजाना यात्रियों के लहु-लुहान व मौत तक की खबर आती रहती है। ट्रेनों के प्लेटपफार्म पर आते ही उसके भीतर प्रवेश करने के लिए यात्रियों में जंग छिड़ जाती है। यह जंग स्टेशन में घुसने से लेकर ट्रेन के अंदर घुसने तक जारी रहती है। आज कल यह जंग इतना विकराल रूप ले लेती है कि यात्रियों को लहुलुहान तक हो जाना पड़ता है। इस जंग के खत्म हो जाते ही आगाज होता है टेªन के भीतर की जंग का। सफर करने के लिए दो गज जगह तलाशने का, जहां वो खड़े हो सफर तय कर सके। कई सौ की संख्या में लोगों को भारी भरकम रकम अदा करने पर भी मिलों का सफर ए

एक ऐसा नया कल...

एक ऐसा नया कल... सूरज की लालिमा में डूबा समां हो, फूलों की खिल-खिलाती हंसी हो, न कोई बंधन न कोई सिखवा हो, बस एक ऐसा ही नया कल हो... जहाँ चहुँ ओर फैली बेफिक्री हो, जहाँ मुस्कुराने के कई वजह हो, जहाँ उड़ने को आज़ाद गगन हो, बस एक ऐसा ही नया कल हो... खुशियाँ जहाँ मोहताज़ न हो, जहाँ ज्ञान- अन्धकार न हो, जहाँ मन में भय-संशय न हो, बस एक ऐसा ही नया कल हो... जहाँ उबाल मारते अरमान हो, फैला हर ओर रंग प्यार का हो, और कुछ भले ही हो न हो बस एक ऐसा ही नया कल हो... रजत त्रिपाठी कच्ची कलम की श्याही से.… 

रणनीति का हिस्सा है ये चुनावी जीत

जीत के शंखनाद से यह घोषणा की गई कि विश्व के सबसे बडे़ गणतंत्रा के अगले प्रधनमंत्राी नरेन्द्र मोदी होंगे। इस घोषणा के साथ ही विश्व भर से बधईयों व शुभकामनाओं का ऐसा सिलसिला शुरू हो गया जिसके अभी तक थमने का नाम नहीं लिया जा रहा है। अमेरिका के राष्ट्रपति ओबामा ने खुद पफोन कर मोदी को बधइयां दि और अमेरिका आने का न्यौता दिया।  चुनावी नतिजों के आते ही पूरे राष्ट्र में जीत का महोत्सव मनाया जाने लगा। ऐसा होना भी लाज्मी है। आखिरकार नरेन्द्र मोदी ने भाजपा को जो जीत दिलाई है उसके लिए भाजपाई न जाने कितने वर्षांे से प्यासे थे। इसके साथ ही भारत में 30 वर्षो के बाद पूर्ण बहुमत से एक तन्हाई राज वाली सरकार बनने जा रही है। इस चुनावी जीत ने पूरे देश को असीम खुशी का माहौल दिया है। मतदान के नतीजों से यह स्पष्ट हो जाता है कि देश के दिल और दिमाग में बस नरेन्द्र मोदी हैं। चुनावी नतिजों के आते ही मोदी अपनी मां के पास पहुचें और उनसे आर्शीवाद लिया। भला इसे किर्तिमान और क्या होगा । भाजपा के साथ साथ देश को एक नई दिशा देने के लिए मोदी ने दिन रात कड़ी मेहनत की है। उन्होंने एक निजी टी.वी. चैनल को दिए साक्षात्कार म

आखिर अब आगे क्या …

जोरों-शोरों से चुनावी बिगुल बजा, महारथी मैदान में उतर आए, भीषण गरजना के साथ रणभूमि सजी और अब यह अपने समापन की और परंतु क्या वकई यह युद्ध समाप्त हुआ। क्या इसके उपरांत कोई नया बिगुल नहीं बजेगा, क्या कोई नया रण आरंभ नहीं होगा, क्या राष्ट्र की राजनीतिक सरजमीं ठंडी हो जाएगी। ऐसे ही तमाम सवाल देश के दिल में उफ्फान मार रहे हैं। आखिर अब नई सरकार बनने के बाद आगे क्या। जिस चुनावी लहर से देश ग्रस्त था, उसके समापन का रंग कैसा होगा। यह देखने के लिए पूरा विश्व उत्सुक है और उनका उत्सुक होना भी लाज्मी है। जो जन समर्थन इस चुनावी समर में दिखा, वह पहले कभी भी देखने को नहीं मिला। मतदान केंद्रों पर उमड़ी मतदाताओं की भीड़ यह साफ बायां कर रही थी कि जनादेश में जागरूता, कामनाएं, उम्मीद, और आशाएं अजागर हो उठीं हैं। वो एक बेहतर कल, एक बेहतर भविष्य और तमाम झंझटों से मुक्त एक समाज चाहता है। पर क्या चुनावी नतीजों का सूरज मतदाताओं की उम्मीद को ज्योतिर्मय पायेगा? मतदाताओं ने जिस जोश, उत्साह, जनसमर्थन से एकजुट होकर राष्ट्र हित के लिए मतदान किया, क्या वो नतीजों के बाद अदृशय हो जायेगा? सड़कों पर उतरी भीड़ का अस्तित्व क्

अपना ही घर लूटता रहा…

अपना ही घर लूटता रहा…  मैं दुनिया बचाने का दावा करता रहा, न जाने कितने जंग मै लड़ता रहा, पर देखा न मैंने अपना ही मोहल्ला  और यहाँ अपना ही मोहल्ला लूटता रहा जबाना बदलने का दावा मैं ठोकता रहा, देश के ठेकेदारों को चुनौतियां देता रहा, पर भूल गया अपने ही गलियों के गड्ढे  और यहाँ अपना ही घर लूटता रहा लड़ने सड़कों पर अकेले निकलता रहा, खिलाफत परम्पराओं, फतवाओं की करता रहा पर दिखा नहीं अपने गाँव का गन्दा क़ानून और यहाँ अपना ही गाँव लुटता रहा। दुन्ध्ले जब जीत का रास्ता होने लगा, दिल में हार का डर जब सताने लगा, फिर वापस एक नज़र मुड़कर देखा  और पाया यहाँ अपना घर लूटता रहा। घर लौट घर की लड़ाई जीत गया, बात धीरे धीरे मैं पते की समझ गया ज़बाने की खातिर पहले बीज ही अच्छे बोने होंगे,  वरना झूठे दावों से लूटते घरों के ही नज़ारे होंगे।  रजत त्रिपाठी की कच्ची कलम कि श्याही से.…  

टूटते चुनावी मंडप

टूटते चुनावी मंडप  जैसे-जैसे चुनावों के समापन का समय नजदीक आता जा रहा है वैसे-वैसे ही लोगों के अंदर चुनावी उत्साह में गिरावट नजर आ रहा है। पहले गली-कुच्चे, नुक्कड़-चौराहों, बस स्टैंडों आदी पर घंटो सजने वाली चुनावी चौपालें अब उठने लगी है। ऐसे में इसके लिए न केवल मीडिया की भागीदारी बल्कि राजनेता भी जिम्मेदार हैं। एक के बाद एक ताबड़तोड़ रैलियां, जनसभाएं व प्रचार करने वाले राजनेता व उनके साथी चुनाव के होते ही एकदम अदृश्य हो गए हैं।  इसके पीछे निरंतर बदलती देश की राजनीतिक तस्वीर का भी हाथ हैै। क्या कार्यकर्ता, क्या राजनेता सभी के सभी अपने गढ़, अपने घरों को त्याग पहुंच गए काशी। ऐसे में अब उनके संसदीय क्षेत्रा या गढ़ में सजती चुनावी चौपालों का उठना तो लाज्मी ही है। साथ ही मीडिया भी उनके पीछे-पीछे काशी जा पहुंचा है। परंतु मतदाताओं को राजनीतिक मंडप के चुनावी चौपालों को बिखरता देख निराश नहीं होना चाहिए। क्योंकि यह तो राजनीति का मूलमंत्रा बन चुका है कि अपना काम बनता तो भाड़ में जाए जनता।  रजत त्रिपाठी की कच्ची कलम की श्याहि से… 

चुनावी महाभरत की रोमांचक टक्कर

चुनावी महाभरत की रोमांचक टक्कर देश में चुनावी रण शुरू हो चुका है और सभी की नजरें बनारस की सीट पर है। हों भी क्यों न, इस चुनावी महाभरत में सबसे रोमांचक टक्कर होने जा रही है। भाजपा के प्रधनमंत्राी पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी और राजधानी दिल्ली की कुर्सी छोड़ भाग खड़े हुए पूर्व मुख्यमंत्राी अरविंद केजरीवाल आमने सामने हैं। ऐसे में यहां की चुनावी सरगर्मी और बढ़ जाती है। यदि बात की जाए मोदी कि तो ये सापफ दिखता है कि मोदी की लहर है परंतु यह मोदी को पूर्ण बहुमत दिला पाएगी यह नहीं यह कहना थोड़ पेचिदा हो जाता है। बनारस कई र्ध्मों का गढ़ है और इस चुनावी बयार में यहां मतदान का ध््रवीकरण हो रहा है। केजरीवाल खुद भी अब बनारस जा पहुंचे है। ऐसें में देखने वाली बात यह होगी कि क्या अपनी कुर्सी के लिए केजरीवाल भी संाप्रदायिक व जातिय राजनीति पर खुलकर उतर आएंगें? देश भर की चुनावी चौपाल में जिकर अब बनारस की तपती चुनावी रण का हो रहा है। और हो भी क्यों न जिस कदर पिछले कुछ महिनों में मीडिया ने केजरीवाल को चढ़ाया है उससे दर्शकों को भी केजरीवाल की रोजाना नई पटकथा देखने की लत लग गई है। ऐसे में पफैसला अब 16 मई को ही ह

चुनावी महाकुंभ का नया परपंच

                            चुनावी महाकुंभ का नया परपंच भारत के प्रत्येक पांच वर्षों में होने वाले राजनीतिक महाकुंभ का बिगुल बज चुका है। एक से एक राजनीतिक पंडितों ने अपने सभी यज्ञ, हवन व मंत्रों को इस महाकुंभ में छोंक दिया है। सब का एक मात्रा ही मकसद है, कुर्सी हथियाना। ऐसे में एक-एक कर सभी नेता अपने प्रत्येक दांव पेंच को खेल लेना चाहता है। कोई भी इसमें पीछे नहीं रहना चाहता है। सभी एक से एक परपंच रचने में लगे हुए हैं। भले ही इन चुनावी परपंचों के खातिर किसी को कितना भी जलिल होना पड़े पर अब सब मंजुर है। ऐसे ही एक राजनीतिक पंडित केजरीवाल भी अपनी गुण भग करते  हुए मालूम होते हैं। उनके ऐसे गुणा भाग पर संदेह होना भी लाज्मी है। कैसे एक पूर्व मुख्यमंत्राी के उफपर एक के बाद एक हमले हो सकते हैं? क्यों केजरीवाल ने किसी भी हमले कि जांच के लिए रिपोर्ट दर्ज नहीं करवायी? कैसे एक ही नेताजी को बार बार मारा जा सकता है? अब चाहे इसे केजरीवाल का दुर्भाग्य कहिए या पिफर उनके द्वारा रचित एक नाटक, दोनों ही स्थिति इस महाकुंभ की क्षति होती गरिमा को बयान कर रही है। महाकुंभ में गोता मार के राजनेता, अपने दाग, ध

लीजिए शुरू हो गया साम्प्रदायिकता का खेल

लीजिए शुरू हो गया साम्प्रदायिकता का खेल परवान चढ़कर बोल रहा है राजनीति का सुरूर। राजनीति में कुर्सी हथिया लेने के बाद नेताओं के समक्ष अच्छे अच्छे नहीं टिकते हैं और जब बात हो इसी कुर्सी को हथियाने कि तो कोई भी नेता पीछे नहीं रहना चाहता है। सभी राजनेता एड़ी चोटी तक का जोर लगा इस कुर्सी को हथियाना चाहते हैं। भले ही इसके खतिर उन्हें हजारों झूठ बोलने पड़े या फिर विरोधी को रोकने के लिए किसी भी हद तक जाना पड़े, वह शान से सब करते हैं। परंतु सवाल यह खड़ा होता है कि इन राजनेताओं के ऐसे कर्म व कर्तव्य किस हद तक सही हैं। देश के लोकसभा चुनावों के प्रथम चरण में जहां अब एक सप्ताह भी बाकि नहीं वहां संप्रादायिकता का खेल खेलना क्या उचित है। अभी हाल ही में कोबरा पोस्ट के द्वारा किए गए स्टिंग ने पूरी राजनीति कि रणभूमि में हलचल पैदा कर दी है। बाबरी मस्जिद व अयोध्या कांड से शायद ही देश का कोई परिवार अछूता रह गया हो। परंतु ऐसे समय मे उस कांड को लेकर किए गए स्टिंग ने चुनावी कुरूक्षेत्रा कि सरगर्मी को बढ़ दिया है। भले ही स्टिंग ने आडवाणी, कल्याण सिंह व नरसिम्हा राव जैसे दिग्गज नेताओं कि छवि पर सवाल दाग दिए

बड़ बोले नेता चलाते हैं राजनीति

                     बड़ बोले नेता चलाते हैं राजनीति देश के आम चुनाव जैसे जैसे नजदीक आते जा रहे, वैसे वैसे नेताओं कीे शब्दावली में भी बदलाव आता जा रहा है। राजनीति में एक दूसरे के काम का आकलन कर अपेक्षा करना तो जनहीत के लिए ही लाभदायक साबित होता है। परंतु आज के परिपेक्ष में यह आकलन बिखरता सा नजर आ रहा है। एक से एक नेता दूसरे नेता का निरादर करने में लगे हुए हैं। यहां बात किसी एक दल या नेता कि नहीं अपितु बात हो रही है संपूर्ण देश को चलाने वाले नेताओं के आचरण की। पीछले कुछ दिनों से एक के बाद एक अटपटे बयान सुने को मिले। कोई किसी नेता कि बोटी बोटी कर देना चाहता है तो कोई किसी को कुत्ता, पाकिस्तानी, एके 49 और न जाने क्या क्या बना डालता है। चुनावी मौसम कि गर्मी का असर यह है कि अब तो स्वंय नेता ही नियमों का उल्लंघन करने का उपदेश देते हैं। चुनावी प्रक्रिया में छोलमाल करने के लिए खुद ही दोबारा मतदान करने को उत्साहित करते हैं। यह चुनावी सरगर्मी ही तो है जिस कारण वर्षों तक एक दल की रोटियां तोड़ने वाले नेता अब दूसरे गुटों में पलायन कर रहे हैं। आम तौर पर चुनावों में ऐसी रास लिलाएं देखने को म

पहले कुर्सी फिर राष्ट्र

                                         पहले कुर्सी फिर राष्ट्र राष्ट्र भक्ति, राष्ट्रीय ध्वज, व राष्ट्र भाषा का सम्मान क्या एक राष्ट्र के कुछ वर्गाें तक ही सीमित है? जी हां, ऐसा प्रश्न उठना लाजमी भी है। जब भारत सरकार के वित्त मंत्री पी. चिदंबरम सरेआम जनता के समक्ष आकर अपनी लाचारी यह कहते हुए सिद्ध् करते हैं कि उन्हें हिन्दी नहीं आती। यह कहते हुए उन्हें तनिक भी ख्याल नहीं आया कि वो देश भक्ति कि भावनाओं से ओत-प्रोत राष्ट्र के वित्त मंत्री है। चुनावी माहौल में यह कैसी विडंबना है कि राष्ट्र का कार्यभार सभांलने वालों को ही राष्ट्र भाषा का ज्ञान नहीं है। खैर, बोसटन के हार्वर्ड बिज़्नेस स्कूल से पढ़े मंत्री जी से ऐसी उम्मीद कि जा सकती है। परंतु ऐसे में जब देश के चुनावी अखाड़े का मिजाज गरम हो तो यह रवैया उन्हें रणभूमि में धूल  भी चटवा सकता है। एक व्यक्ति विशेष नेता के खिलाफ मंत्री जी का चुनाव न लड़ पाना उनके न जाने कितने राज़ उजागर कर देगा। परंतु संदेह भी होता है कि यह मंत्री जी के दर्द कि अवाज थी यह चुनाव न लड़ने का बहाना। भाजपा के लगातार बढ़ते वर्चस्व से हताश हो चु

करुणा...

करुणा  करुणामयी करुणा बोली करुणा से, श्याही का रंग दो मुझको भी घिस रा हूँ कागज कलाम से तो सोचा रंग दूं इनको भी... तो सुनो, लिख नहीं रहा हूँ तुझको, बता रहा हूँ तेरे बारे में खुद को देखा है करुणा का सागर तुझमें  तुझमें ही देखी है सशक्त नारी कि शक्ति  देखा है खिलखिलाते फूलों कि हंसी तुझमें  तुझमें ही देखी है सच्ची प्रेयसी कि भक्ति  लिख नहीं रहा हूँ तुझको, बता रहा हूँ तेरे बारे में खुद को.…  सूर्य सा ,चमचमाता तेज है तुझमें  तुझमें झलकती है चन्द्रमा कि शीतलता  केशुओं के बीच घबराता बच्चा भी है तुझमें तुझमें ही है डट कर लड़ने कि क्षमता  लिख नहीं रहा हूँ तुझको  बता रहा हूँ तेरे बारे में खुद को …  ग़ालिब को इक़बाल बनाने कि इनायत है तुझमें  है तू उफान मारते अरमानो का भी समंदर  एक गमगीन हो चूका कोना भी है तुझमें  पर मदमस्त जीती है यारों के सफ़र में लिख नहीं रहा हूँ तुझको, बता रहा हूँ तेरे बारे में खुद को …

बिकाऊ धर्म, बिकता क्रिकेट

                   बिकाऊ धर्म, बिकता क्रिकेट विदेशी धरती से  धर्म बनकर, जहन में जूनून बनकर और प्रेमी की प्रेमिका बनकर आए तुम…। जी हाँ यहां बात हो रही है विदेशी खेल क्रिकेट की। जिसकी छाप आज पूरे भारत में है। घर का बच्चा- बच्चा क्रिकेट का दीवाना है। स्थिति यह है कि राष्ट्र के प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति के बारे में शायद ही उन्हें जानकारी न हो परंतु देश कि क्रिकेट टीम के बारे में उन्हें अवश्य भली-भाँति पता होगा। इस खेल में भी उठा-पटक लगी रहती है। चाहे चौंकों, छक्कों से या करोड़ों पैसों से चमचमाते खिलाड़ियों से। सालों से चले आए दो प्रकार के व्रिफकेट मैचों की परंपरा को छोड़ जन्म लिया एक और शनदार प्रकार ने, जी हां 20-20। इसके आते ही दर्शकों व खेल प्रमियों में उत्सुकता, जिज्ञासा, व जोश की एक तीव्र लहर दौड़ पड़ी। इसी लहर कि हंुकार को रोमांच से परिपूर्ण करते हुए बाजारवाद के स्वरूप से जन्मा आईपीएल ;इंडियन प्रिमियर लीगद्ध। इसके आगाज से ही देश का र्ध्म बन चुके खेल का बजारवाद प्रारंभ हो गया। एक से एक दिग्गज खिलाड़ी व देश के विभिन्न शहरों से आए युवाओं की झोली में इसने करोड़ो की बारिश शुरू कर दी। खि

अराजक, अभिमानी व अपरिपक्कव राजनेता

अराजक, अभिमानी व अपरिपक्कव राजनेता सरकार बनते ही जन लोकपाल मिला, महिलाओं की सुरक्षा हेतु कमांडों पफोर्स, कांग्रेसी व शीला दीक्षित जेलों में बंद हुए व ऐसे ही ढेरों बेबुनियादी वादों को पूरा करते हुए दिल्ली के मुख्यमंत्राी राजधनी की राजनीति में एक नया मोड़ ले आए हैं। सरकार में न होने से पहले इमानदार केजरीवाल सीबिआई को मुक्त करने की बात कहते थे, अपने प्रचार में भी शीला दीक्षित को दिल्ली बलात्कार में लाचार बता और सड़कों पर प्रदर्शन करके वोट मंागते थे। ऐसे ही तमाम मुद्दों पर ख़रा उतरने के लिए ईमानदारी के ठेकेदार अरविंद केजरीवाल और उनके मंत्राी रात-रात भर जाग कर कार्य कर रहे हैं। वो इस बात का भी खास ख्याल रखते हैं कि उनके यह तमाम कर्यशैली आवाम को पता चल सके तभी तो बिना मीडिया के कोई भी कदम नहीं उठाते हैं। राजधनी के आदरणीय कानून मंत्री सोमनाथ भारती ने हाल ही में युगांडा की महिलाओं के घर पर मध्यरात्राी में हमला बोल दिया। यदि उन विदेशी महिलाओं की मानें तो हमारे इमनदार मंत्राी जी ने उनके साथ न केवल अभद्र व्यवहार किया अपितु मार पीट भी कि। भारत के संविधन में यह स्पष्ट रूप से लिखा है कि

भारत के 'साइक्लनिक हिंदू'

भारत के 'साइक्लनिक हिंदू' कोलक्ता के हाईकोर्ट के वकील नरेन्द्रनाथ ने 12 जनवरी 1863 को दिया था भारत को एक महान संत, जिनको विश्व ने स्वामी   विवेकानंद के नाम से पहचाना। स्वामी विवेकानंद जी केवल एक महान संत ही नहीं, एक महान देशभक्त, वक्ता, विचारक, लेखक व मानव प्रेमी थे। उन्होनें अपने विचारों से केवल भारतवर्ष का हि नहीं अपितु पूरे विश्व का उत्थान किया। स्वामी जी एक ऐसे व्यक्तित्व के ध्नी थे जिन्हें शायद ही किसी लेखक की कलम बयां कर सकती है। अमेरिका में उनके कुछ मिनटों के भाषण ने पूरे अमेरिका को उनका शिष्य बना दिया। उनके भषण की शुरूआती पंक्ति ‘मेरे अमेरिकी भाई व बहनों’ ने जैसे पूरे अमेरिका को दिवाना ही कर दिया था। उनकी भाषा व ज्ञान को देखते हुए अमेरिकी मीडिया ने उन्हें ‘साइक्लाॅनिक हिंदू’ का नाम दिया। स्वामी जी एक प्रतिभावन व्यक्ति थे जिनका पूरे विश्व ने सम्मान व प्यार किया। अमेरिका से लौटने के बाद उन्होंने भारतवासियों को संबोध्ति करते हुए कहा था ‘‘नया भारत निकल पड़े मोची की दुकान से, भाड़भंजे के भाड़ से, कारखाने से, हाट से, बजार से, निकल पड़े झाडि़यों, जंगलों, पहाड़ों, प

अपने ही घरों में दम तोड़ती भारतीय बेटियाँ

अपने ही घरों में दम तोड़ती भारतीय बेटियाँ नई दिल्ली। गौरतलब है कि कुछ दिनों से पूरा देश बदलाव देख रहा है।  इन बदलावों से भारतीय बेटियों पर भी असर पड़ा है। वर्ष 2013 में यौन उत्पीड़न के मामलों मंे कई बड़े चेहरे सामने आए। चाहे वो ए. के. गांगुली व तरुन तेजपाल जैसे दिग्गज हो या संत का चोला पहने आसाराम और नारायण सांई हो। 2014 की शुरुआत में ही, कोलकाता में 12 वर्ष की बच्ची के साथ बलत्कार कर उसे गर्भवती बनाकर जला देने वाली खबर से पूरे देश की रूह कांप गई। लड़कियों को पूजे जाने वाले देश भारत में शायद ही कोई ऐसा दिन होता है जब यौन उत्पीड़न की खबर नहीं आती है। कितने ही यौन उत्पीड़न के मामले घर की चारदिवारी में ही कैद होकर दम तोड़ देते हैं।  आज कितनी ही गृहिणियों, बच्चियों व महिलाओं को अपने ही घर में अपने ही भाई, बाप, मामा, चाचा, व ताउफ के यौन उत्पीड़न का शिकार होती हैं। समाज में ऐसे मुद्दे खुलकर सामने नहीं आते चाहे इसे हमारे समाज का दुर्भाग्य कहिए या पुरूष प्रधनता का परिणाम। महिलाओं व बच्चियों को सिर्पफ मंनोरंजन का समान समझ लिया गया है। उनकी आवाज, सिसकियां, आंसू व दर्द सिर्पफ चारद

ना विचार, ना विमर्श, बस हैं तो लुभावने वादे

ना विचार, ना विमर्श, बस हैं तो लुभावने वादे  दिल्ली सरकार के मुख्यमंत्राी अरविंद केजरीवाल एक के बाद एक एलान कर दिल्लीवासियों को अपनी ओर आकर्षित करते जा रहे हैं। ऐसे में मालूम होता है कि मुख्यमंत्राी साहब इन मुद्दों की बुनियाद टटोले बिना ही वादे किए जा रहे हैं। अब उनके 20 किलोलीटर मुफ्रत पानी के वायदे पर ही गौर पफरमा लिजिए। 1 करोड़ 20 लाख की जनसंख्या वाली राजधनी में मात्रा 19 लाख ही पानी के कनेक्शन है और उनमें से भी केवल 9 लाख ही मीटर कनेक्शन्। ऐसे में ये लोकलुभावन तोहपफा है किसके लिए? पूरी दिल्ली के वोट बटोरने के बाद पानी की सौगात केवल 9 लाख घरों को ही, ये कैसी खानापुर्ति हुई। मुख्यमंत्राी को सुर्खियां बनाने की इतनी जल्दी थी कि उन्होनें आनन-पफानन में पफैसला तो ले लिया लेकिन यह भी न सोचा कि द्वारका व वसंत कुंज जैसे हाउसिंग सोसाइटियों में पानी कैसे  पहुंचेगा? जहंा पाइप लाइन है ही नहीं वहां पानी कैसे पहुंचाया जाएगा? ऐसे में मुख्यमंत्राी ने दिल्ली के कोने-कोने में पानी पहुंचाने वाले मददगार टैंकर वाले सहयोगियों को भी टैंकर मापिफया बता उखाड़ पेंफकने की बात कह डाली है। यदि मुख्यमं

दंगों की आग पर सिकेगी लोकसभा चुनावों की रोटी

दंगों की आग पर सिकेगी लोकसभा चुनावों की रोटी इंसाफ का इंतजार करती बूढ़ी हो गई आंखें, जख्म पर मोटी परत चढ़ रही थी, पीढ़ी आव्रफोश को दबा आगे बढ़ रही थी, तभी लोकसभा चुनावों ने दस्तक दी और सब दोबारा स्पष्ट रूप से समक्ष आ गया। वो दर्द का मंजर, वो कत्लेआम, वो नरसंहार वापस ताजा हो गया। समुदायों में पूर्वजों के अपमान व नरसंहार के लिए इंसापफ का आव्रफोश जाग गया। देश के तमाम सियासी नेता चुनावों के समीप आते ही एक दूसरे के खिलापफ दंगों की राजनीति खेलना शुरू कर देते हैं। चाहे वो भाजपा के खिलापफ गुजरात के सन् 2002 के दंगों को लेकर हो या पिफर कांग्रेस के खिलापफ सन् 1984 के सिख दंगे हों। सियासत की गरमी इन दंगों से बढ़ती जा रही है। कांग्रेस व भाजपा का तो इतिहास रहा है की ये दोनों अपने सियासी पफायदों के लिए दंगों व समुदायिक बंटवारों का दांव खेलकर आगे बढ़ते गए हैं। परंतु राजधनी में भ्रष्टाचार व आम आदमी के मुद्दों से जीतकर आई आम आदमी पार्टी भी अब समुदायिक बंटवारे की राजनीति में उतर आई है। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांध्ी के द्वारा एक टीवी कार्यव्रफम में दिए गए साक्षत्कार में उन्होंने सन् 1984 के सिख दंगों

मीडिया ने बनाया है 'एएपी' को

मीडिया ने बनाया है 'एएपी' को गुरुवार को आप ने विश्वास मत जीत लिया। विश्वास मत के लिए हुए चुनाव में आप को 37 विधयकों ने समर्थन देकर विश्वास मत दिलवा दिया। 2013 में आयी आम आदमी पार्टी शुरुआत से ही सुर्खियों में बनी हुई है। सरकार में आते ही मुख्यमंत्र अरविंद केजरीवाल तेापफेां ने दिल्ली की जनता को उनकी अेार और आकर्षित किया तो वहीं दूसरी ओर अन्य राज्य सरकारों को विचार करने पर मजबुर कर दिया। भारत के इतिहास में यह एक ऐसा समय चल रहा है जब अत्यध्कि व्यक्ति देश के मुद्दों व बदलाव से जुड़ रहे हैं। आज आम आदमी पार्टी के कारगार व लोकप्रिय होने का बहुत बड़ा कारण मीडिया है। अरविंद केजरिवाल ने कभी भी अपने आपको सुरखियों से हटने नहीं दिया। पिफर चाहे वो अन्ना के साथ रह कर या पिफर उनसे अलग रह कर। मिडिया ने भी उनके द्वारा किए गए वादों व एलानों को जनता तक पहुंचाने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई। मिडिया ने उनके भाषणों, जनसभाओं, रैलियों को अत्याध्कि सुर्खियों में रखा। अरविंद केजरिवाल ने भी मीडिया को हर दुसरे दिन नए अवसर दिए ओैर सुर्खियों में बने रहे। चाहे वो काभी उपवास करके, बिजली के खंभे पर चढ़कर