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Showing posts from June, 2014

एक बार फ़िर…

एक बार फ़िर…  भारतीय समाज की सशक्त नारी जिसे दिवाली जैसे अवसरों पर पूजा जाता है और रोज़ाना....  एक बार फिर उसकी इज्जत को तार-तार कर दिया गया। दरिंदो ने सरेआम उसकी आबरू को नौंचा और जनता मूक दर्शक बन देखती रही। यह दर्दनाक घटना है मध्य प्रदेश के खंडवा जिले का जहां एक महिला को फिर महाभारत की द्राैपदी बनाने के लिए मजबूर होने पड़ा। महाभारत की भांति इस पुरूष प्रधान समाज में भी अबला नारी बिलखती रही, तिलमिलाती रही परंतु किसी ने उसकी एक न सुनी। हस्तिनापुर की जगह खंडवा में हुई यह अशोभनीय घटना हैवानियत ओैर दरिंदगी से पूर्ण रही। यहाँ  बस र्फक सिर्फ इतना था कि इस बार द्राैपदी को हारने के लिए न तो पांडव थे और न ही बचाने के लिए कोई कृष्ण। खांडवा  जिले में एक पति ने ही अपने रिशतेदारों के साथ मिलकर अपनी अर्धांग्नी की इज्जत को तार तार कर दिया। सभी 10 के 10 हैवानों ने उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया और जब हवस के इन पुजारियों का मन जब इससे भी ना भरा तो उस महिला को सरेआम नंगा घुमाया गया।  दर्द से टूट चुकी, प्यास से छटपटाती, तिलमिलाती बेहोश महिला ने जब पानी मांगा, तो वैहशिपन पर उतारू उन दरिंदो ने

दहकती भारतीय रेलवे

दहकती भारतीय रेलवे गर्मियों  का मौसम आते ही भारतीय रेलवे पर भीड़ का पहाड़ टूट पड़ता है। इस मौसम के आते ही लगता है मानो जैसे किसी ने बांध् से पानी छोड़ दिया हो और वह अपनी पूरी रफ्रतार से आगे बढ़ रहा हो। देश की राजधनी दिल्ली में चार प्रमुख रेलवे स्टेशन हैं । जहां पर हमेशा भीड़ का तांता लगा रहता है। आनंद विहार, नई दिल्ली, पुरानी दिल्ली व हजरत निजामुद्दीन सदैव भीड़ से ठसा-ठस भरा रहता है। ऐसा नहीं है कि यह एक मौसम या इसी वर्ष की समस्या है। यह समस्या है हर वर्ष, हर मौसम और हर रोज की। इसी कारण रोजाना यात्रियों के लहु-लुहान व मौत तक की खबर आती रहती है। ट्रेनों के प्लेटपफार्म पर आते ही उसके भीतर प्रवेश करने के लिए यात्रियों में जंग छिड़ जाती है। यह जंग स्टेशन में घुसने से लेकर ट्रेन के अंदर घुसने तक जारी रहती है। आज कल यह जंग इतना विकराल रूप ले लेती है कि यात्रियों को लहुलुहान तक हो जाना पड़ता है। इस जंग के खत्म हो जाते ही आगाज होता है टेªन के भीतर की जंग का। सफर करने के लिए दो गज जगह तलाशने का, जहां वो खड़े हो सफर तय कर सके। कई सौ की संख्या में लोगों को भारी भरकम रकम अदा करने पर भी मिलों का सफर ए

एक ऐसा नया कल...

एक ऐसा नया कल... सूरज की लालिमा में डूबा समां हो, फूलों की खिल-खिलाती हंसी हो, न कोई बंधन न कोई सिखवा हो, बस एक ऐसा ही नया कल हो... जहाँ चहुँ ओर फैली बेफिक्री हो, जहाँ मुस्कुराने के कई वजह हो, जहाँ उड़ने को आज़ाद गगन हो, बस एक ऐसा ही नया कल हो... खुशियाँ जहाँ मोहताज़ न हो, जहाँ ज्ञान- अन्धकार न हो, जहाँ मन में भय-संशय न हो, बस एक ऐसा ही नया कल हो... जहाँ उबाल मारते अरमान हो, फैला हर ओर रंग प्यार का हो, और कुछ भले ही हो न हो बस एक ऐसा ही नया कल हो... रजत त्रिपाठी कच्ची कलम की श्याही से.…